Friday, April 4, 2008

महज टैक्स बचाने का तरीका नहीं है इंश्योरेंस

महज टैक्स बचाने का तरीका नहीं है इंश्योरेंसज्यादातर लोगों के लिए इंश्योरेंस इनवेस्टमेंट का एक तरीका मात्र है। लोग जीवन बीमा की एक या दो पॉलिसियां खरीदकर बाकी बातों को नजरअंदाज कर देते हैं। उनकी राय में दुर्घटना बीमा, स्वास्थ्य बीमा या घर के कीमती सामानों का बीमा कराना फिजूलखर्च है। ऐसे लोगों की यह आम दलील होती है कि अगर चुस्त-दुरुस्त हैं, तो स्वास्थ्य बीमा कराने की जरूरत ही क्या है। बीमा सलाहकारों के मुताबिक इंश्योरेंस के बारे में लोगों में ऐसी गलतफहमियां आश्चर्यजनक रूप से लगातार कायम हैं। यही वजह है कि अब भी बहुत बड़ी संख्या में लोग इंश्योरेंस के दायरे से बाहर हैं या उनका सुरक्षित बीमा नहीं हो पाया है। ज्यादातर लोगों के जहन में लंबे अर्से से इंश्योरेंस के बारे में ऐसी सोच कायम है, जिसे बदलना मुश्किल है। बीमा सेक्टर में प्राइवेट कंपनियों के प्रवेश के बावजूद लोगों की पुरानी मान्यताएं जस की तस बनी हुई हैं।

दो से ज्यादा पॉलिसियों का क्या करना
इंश्योरेंस एजेंटों के मुताबिक भले ही लोगों ने कुल मिलाकर दो लाख से ज्यादा की पॉलिसी नहीं ले रखी हो, लेकिन उनकी राय होती है कि 2 से ज्यादा पॉलिसियां लेना बेकार है। अब जरा सोचिए आज के दौरे में दो लाख की रकम कितनी अहमियत रखती है। अगर परिवार के कमाऊ सदस्य के साथ कोई अनहोनी हो जाती है, तो ऐसी स्थिति में उसके घरवालों की माली हालत क्या हो जाएगी।

इंश्योरेंस तो इनवेस्टमेंट है
हममें से ज्यादातर लोगों के लिए इंश्योरेंस या तो टैक्स बचाने का एक आसान तरीका है या फिर छोटी-छोटी जमा रकम के बदले निश्चित अर्से के बाद मैच्योरिटी के रूप में होने वाली एकमुश्त आमदनी का स्त्रोत। लेकिन असल में जीवन बीमा इन मकसदों के लिए नहीं कराए जाते हैं। इसका वास्तविक मकसद किसी अनहोनी की स्थिति में आपके घरवालों की आर्थिक मदद से जुड़ा है। मतलब साफ है कि अगर आप इंश्योरेंस को सिर्फ इनवेस्टमेंट के तौर पर देखते हैं, तो आप बड़ी भूल कर रहे हैं। ऐसे में आप वाजिब मकसद के लिए उचित प्लान को चुनने में चूक कर बैठेंगे।

हेल्दी हैं तो हेल्थ इंश्योरेंस क्यों

इंश्योरेंस से जुड़ी एक और गलतफहमी है, जो बड़ी सामान्य है। वह यह कि चुस्त-दुरुस्त लोगों को हेल्थ इंश्योरेंस कराने की कोई जरूरत नहीं होती। लेकिन सोचिए बीमारी या दुर्घटना समय बताकर थोड़े ही आती है। कब किसके साथ क्या हो जाए, कौन जानता है। और अगर ऐसा हो जाता है, तो फिर इलाज पर होने वाले मोटे खर्च से आप कैसे बच पाएंगे। कम उम्र के लोगों के लिए हेल्थ इंश्योरेंस की पॉलिसियों के लिए प्रीमियम की रकम भी काफी कम होती है। अगर आप किसी बीमारी के बाद ऐसी पॉलिसी लेते हैं, तो उसका प्रीमियम रेट बढ़ जाएगा। या फिर इलाज पर होने वाले खर्च का एक हिस्सा ही इंश्योरेंस में कवर हो पाएगा। यहां तक कि अगर कोई सीरियस बीमारी है, तो आप इंश्योरेंस से वंचित भी हो सकते हैं। ऐसे में समझदारी इसी में है कि भले ही आप स्वस्थ हों, लेकिन इंश्योरेंस से समझौता न करें।

बीमा तो फिजूलखर्च है

बीमा एजेंटों के अनुसार अक्सर लोगों का यह सवाल होता है कि जब बीमा कराने से कोई बड़ा रिटर्न नहीं मिल सकता, तो इसकी जरूरत ही क्या है। इसी के चलते साल भर के बाद लोग स्वास्थ्य बीमा, बहुमूल्य सामानों का बीमा या अन्य साधारण बीमा पॉलिसियों का रिन्युअल कराने से कतराते हैं। उन्हें लगता है कि साल भर में उन्होंने कोई क्लेम तो किया नहीं, इसलिए प्रीमियम पर चुकाए गए पैसे फालतू में खर्च हो गए। लेकिन जरा सोचिए पांच हजार रुपए का प्रीमियम देकर साल भर के लिए पांच लाख का हेल्थ इंश्योरेंस करवाना बेहतर है या फिर बगैर इंश्योरेंस के पांच लाख का खर्च सहना। हो सकता है कि बीमा न होने की स्थिति में आपको पांच लाख रुपए जुटाने के लिए भविष्य में निवेश के लिए रखी गई रकम को इस मद में खर्च करना पड़ जाता या फिर गहने जेवर तक बेचने पड़ जाते।

कंपनियां भी हैं दोषी
इंश्योरेंस कंपनियां भी लोगों को लाइफ इंश्योरेंस के आधारभूत पहलुओं के बारे में अवगत नहीं करातीं। इन कंपनियों का ज्यादा जोर यूनिट लिंक्ड जैसे अपेक्षाकृत महंगे प्लानों को बेचने पर होता है और इस वजह से जीवन बीमा के वास्तविक उद्देश्यों की अनदेखी कर दी जाती है।

जरूरत के हिसाब से चुनें प्लान
हमें से बहुतों को यह पता नहीं है कि हमारी खास जरूरतों के हिसाब से कौन-कौन से प्लान उपलब्ध हैं। उदाहरण के लिए बहुत से लोग यह नहीं जानते कि जीवन बीमा और स्वास्थ्य बीमा के अलावा हम अपने व्यापारिक प्रतिष्ठानों या लैपटॉप और टीवी सेट को भी इंश्योर्ड करा सकते हैं। समझदारी इसी में है कि हम इंश्योरेंस की जरूरतों को समझें और अपने हिसाब से सही पॉलिसी का चयन करें।